मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम,
मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह !
अपने होठों से मुझको लगा लो अगर,
बज उठूंगा मैं फिर बांसुरी की तरह …….!
तुमको देखा तो सांसों ने मुझसे कहा,
ये वही है जिसे था तलाशा बहुत !
शब्द हैरान हैं व्यक्त कैसे करें,
होठ कैसे कहें मैं हूं प्यासा बहुत !!
मैं भी ख़ुद को समंदर समझने लगूं,
तुम जो मिल जाओ आकर नदी की तरह …..!
मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह
चांद चेहरे को सब शायरों ने कहा,
मैं भी कैसे कहूं, चांद में दाग़ है !
दूध में थोड़ा सिंदूर मिल जाए तब,
तेरा चेहरा उसी तरह बेदाग़ है !!
धूप से रूप तेरा बचाऊंगा मैं,
सर पे रख लो मुझे ओढ़नी की तरह……!
मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह
लड़खड़ाई हुई ज़िंदगी है मेरी,
थाम लो मुझको मेरा सहारा बनो !
तुम जो पारो बनो देव बन जाऊं मैं,
वीर बन जाऊं मैं तुम जो ज़ारा बनो !
तुम निगाहों से दे दो इजाज़त अगर,
गुनागुना लूं तुम्हें शायरी की तरह…..!
Wah Brother wah
ReplyDeletekya baat hai
ReplyDeleteGAZAB IMRAN BHAI
ReplyDeleteBht khoob
ReplyDeletekye bat hai imran bhai one my fav geet
ReplyDeleteBahut umda treen lahze se saraya h in haseen lafZo ko
ReplyDeleteNice Imran Bhai
ReplyDeleteLove you imran bhai
ReplyDeleteHello
DeleteKay baat he
ReplyDeleteVery good birother
ReplyDeleteNice gazal imran bhai
ReplyDeleteAwoseme
ReplyDeleteWaaaaah bhai Gjb...!
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