Friday 13 September 2013

लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन, मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन !

लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन, मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन ! मेरे घरवाले कहते हैं बड़े अब हो चुके हो तुम, मगर मन फिर भी कहता है करूं कुछ और पागलपन !! हवा के साथ उड़ने वाले ये आवारगी के दिन, मेरी मासूमियत के और मेरी संजीदगी के दिन ! कुछेक टीशर्ट, कुछेक जींस और एक कैप छोटी सी, मेरे लैपटॉप और मोबाइल से ये दोस्ती के दिन !! अजब सी एक ख़ुशबू फिर भी घर में साथ रहती है, कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है……..!
मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है, इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है ! मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो, मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !!
यही एहसास मुझमें सारा सारा दिन महकता है, मुझे छूने को उसका मख़मली पल्लू सरकता है ! बुलाती है किसी की दालचीनी सी महक मुझको, मेरा ही नाम ले-लेकर कोई कंगन खनकता है !! सुबह में रात में और दोपहर में साथ रहती है, कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है…..! समय जब भागता है रात गहरी होने लगती है, तो उसकी याद की शम्मा सुनहरी होने लगती है ! मेरी पलकों पे उसके ख़्वाब उगने लगते हैं जैसे , अजब ख़ुशबू से तर मेरी मसहरी होने लगती है ! मैं उठकर बैठता हूं और क़लम काग़ज़ उठाता हूं , मैं उस काग़ज़ पे अपनी याद का चेहरा बनाता हूं !! उजाले चुभने लगते हैं मेरी आंखों को कमरे के, क़लम को चूमता हूं और चराग़ों को बुझाता हूं ! मेरी यादों के इस उठते भंवर में साथ रहती है , कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है ……. !!
@ इमरान प्रतापगढ़ी

मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम, मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह !

मेरी आंखों का प्रस्ताव ठुकरा के तुम, मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह ! अपने होठों से मुझको लगा लो अगर, बज उठूंगा मैं फिर बांसुरी की तरह …….! तुमको देखा तो सांसों ने मुझसे कहा, ये वही है जिसे था तलाशा बहुत ! शब्द हैरान हैं व्यक्त कैसे करें, होठ कैसे कहें मैं हूं प्यासा बहुत !!
मैं भी ख़ुद को समंदर समझने लगूं, तुम जो मिल जाओ आकर नदी की तरह …..! मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह चांद चेहरे को सब शायरों ने कहा, मैं भी कैसे कहूं, चांद में दाग़ है ! दूध में थोड़ा सिंदूर मिल जाए तब, तेरा चेहरा उसी तरह बेदाग़ है !!
धूप से रूप तेरा बचाऊंगा मैं, सर पे रख लो मुझे ओढ़नी की तरह……! मुझसे यूं न मिलो अजनबी की तरह लड़खड़ाई हुई ज़िंदगी है मेरी, थाम लो मुझको मेरा सहारा बनो ! तुम जो पारो बनो देव बन जाऊं मैं, वीर बन जाऊं मैं तुम जो ज़ारा बनो !
तुम निगाहों से दे दो इजाज़त अगर, गुनागुना लूं तुम्हें शायरी की तरह…..!

ख़ून से सींचता है बग़ीचे को जो, मेरी नज़रों में वो बाग़बां आप हैं !

ख़ून से सींचता है बग़ीचे को जो, मेरी नज़रों में वो बाग़बां आप हैं ! हम सभी छात्र तो हैं ज़मीं की तरह, हमपे छाए हुए आसमां आप हैं,…..!!!
जाति की डोर ना बांध पाई कभी, आप हिन्दू रहे ना मुसलमां रहे ! इक तरफ़ होठ पर श्लोक गीता के तो, दूसरी ओर होठों पे कलमा रहे !! नफ़रतों से झुलसते हुए देश में, देखिए एकता के निशां आप हैं….!!! मेरी नज़रों में वो बाग़बां आप हैं …..!!!
हम सभी से अगर कोई ग़लती हुई, आपने हमको मौक़ा दोबारा दिया ! पांव जो लड़खड़ाए कभी राह में, आपने हमको बढ़ के सहारा दिया !! दिल में ममता के सागर छुपाए हुए, मेरी नज़रों में तो एक मां आप हैं……!! मेरी नज़रों में वो बाग़बां आप हैं…..!!!
आप थोड़ा सा गर चेत जाएंगे तो, देश का पूरा नक़्शा बदल जाएगा ! देश का जो युवा गर्त में जा रहा, उसका बहका भी क़दम सम्भल जाएगा !! आपके साथ में नौजवां देश का, सच में तनहा नहीं कारवां आप हैं....!! मेरी नज़रों में वो बाग़बां आप हैं….!!!

बापू का कातिल कौन है ..? इंदिरा का कातिल कौन है ...?

बापू का कातिल कौन है ..? इंदिरा का कातिल कौन है ...? राजीव को किसने क़त्ल किया ..? इस पर संसद क्यूँ मौन है !
नक्सली उधर हथियार लिए, लश्कर के लश्कर आते हैं….. ! अफ़सोस मगर आतंक के हर इलज़ाम मेरे सर आते हैं….. !!
उल्फा हो लिट्टे या बोडो, हम सब का इस से क्या लेना,, कानून के गाल पे रोज़ तमाचा, मार रही है शिव सेना ! गाँधी जी साबरमती में बैठे, आज तलक शर्मिंदा हैं,, क्यूंकि गुजरात में कुर्सी पर, मासूमों के कातिल जिंदा हैं !!
उनको कुर्सी दी जाती है, जो दंगों को भड़काते है…..! अफ़सोस मगर आतंक के हर, इलज़ाम मेरे सर आते हैं !!
ये ताजमहल ये लालकिला, ये जितनी भी तामीरें हैं,, जिन पर इतराते फिरते हो , सब पुरखों की जागीरें हैं !! जब माँगा वतन ने खून, बदन का सारा लहू निचोड़ दिया,, अफ़सोस मगर इतिहास ने ये, किस मोड़ पे लाके छोड़ दिया !!
उनके हिस्से में किले मेरे, हिस्से में छप्पर में आते हैं….! अफ़सोस मगर आतंक के हर, इलज़ाम मेरे सर आते हैं….!! 'इमरान प्रतापगढ़ी

Saturday 7 September 2013

"प्यार की बड़ी इससे और मिसाल क्या होगी, हम नमाज़ पढ़ते हैं गंगा में वज़ू करके..."

"प्यार की बड़ी इससे और मिसाल क्या होगी,
हम नमाज़ पढ़ते हैं गंगा में वज़ू करके..."

हवा कुछ ऐसी चली है बिखर गए होते रगों में खून न होता तो मर गए होते

हवा कुछ ऐसी चली है बिखर गए होते
रगों में खून न होता तो मर गए होते

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ
हम अपने शहर में होते तो घर गए होते

हमीं ने जख्मे -दिलो-जाँ छुपा लिए वरना
न जाने कितनों के चेहरे उतर गए होते

हमें भी दुख तो बहुत है मगर ये झूठ नहीं
भुला न देते उसे हम तो मर गए होते

सुकूने -दिल को न इस तरह से तरसते हम
तेरे करम से जो बच कर गुजर गए होते

जो हम भी उस से जमाने की तरह मिल लेते
हमारे शामो - ओ शहर भी संवर गए होते

न टपके ज़मीं पर कोई अश्क बह के, दिखा दो ये उसका दिया ग़म भी सह के। ये आंसू हैं मोती इन्हें मत लुटाओ, तुम्हें है कसम तुम ज़रा मुस्कुराओ। नहीं बांटने से हंसी ख़त्म होती। यहीं पर.

यहीं पर नहीं ज़िंदगी ख़त्म होती,

गर अपना कोई बेवफ़ा हो गया है,
समझ लो कि इक हादसा हो गया है।
नहीं इससे हर इक ख़ुशी ख़त्म होती। यहीं पर.......

ख़ता दूसरे की सज़ा ख़ुद को मत दो,
ज़हर जिसमें हो वो दवा ख़ुद को मत दो।
न देखो कि कुछ लोग क्या कर रहे हैं,
हैं एकाध तो जो दुआ कर रहे हैं।
भुला दो वो गुज़री हुई सारी बातें,
समझ लो अंधेरे भरी थी वो रातें।
और इससे नहीं रौशनी ख़त्म होती। यहीं पर......

हुआ जो भी वो सब यकायक नहीं था,
यही सच है वो तेरे लायक नहीं था।
न टपके ज़मीं पर कोई अश्क बह के,
दिखा दो ये उसका दिया ग़म भी सह के।
ये आंसू हैं मोती इन्हें मत लुटाओ,
तुम्हें है कसम तुम ज़रा मुस्कुराओ।
नहीं बांटने से हंसी ख़त्म होती। यहीं पर..........

तुम इस तरह ख़ुद को अकेले न छोड़ो,
ये दुनिया, ये दुनिया के मेले न छोड़ो।
अगर उसकी यादें हैं दिल से भुलाना,
मेरा गीत ये साथ लेकर के जाना।
तुम्हें बीते दिन याद बरबस दिलाकर,
तेरे टूटे दिल को यूं ढांढस बंधाकर।
है इमरान की शायरी ख़त्म होती। यहीं पर........